चला चल, चला चल ......................
प्यास जब जब भी बड़ी हम से रूठी हर नदी फोड़ आये गगरियों को या तलाशे जल
चला चल, चला चल ......................
प्यास जब जब भी बड़ी हम से रूठी हर नदी फोड़ आये गगरियों को या तलाशे जल
चला चल, चला चल ......................
यह जीवन का ताना बाना
बड़ा जटिल इस को सुलझाना
एक गाठ के खुल जाने से
कब मिटता है बल
चला चल, चला चल ......................
बॉस मारते बासे रिश्ते
उम्र बीतती इनमे पिसते
कितनो को है लील गए
यह सम्बन्धी दलदल
चला चल, चला चल ......................
बुझा बुझा सा है उजियारा
सूरज परछाई से हारा
देखे धीरज धर लेने का
क्या मिलता प्रतिफल
चला चल, चला चल ......................
- महेंद्र भार्गव