शनिवार, 8 फ़रवरी 2014




बड़ा कातिल अँधेरा है 
बड़ा कातिल अँधेरा है सुबह होने नहीं देगा 
निगाहों से निगाहों तक धुँआ है बस उदासी है 
ज़रा देखो किसी पुल से नदी हर एक प्यासी है 
भयानक ख्वाब आँखों फिर सोने नहीं देगा
बड़ा कातिल ……………… 
बहुत अनुकूल है मौसम घटायें महरवा भी है
सफ़र के ही मुताबिक  सारी हवायें 
तलातुम अपनी कश्ती का सफ़र होने नहीं देगा 
बड़ा कातिल ……………… 

महेन्द्र भार्गव 
गंज बासौदा