शनिवार, 16 अक्तूबर 2010

सूनी है दहलान

सन्नाटा पसरा गलियों में सूनी है दहलान
दहलीजों से लड़ते देखे हमने कई मकान

कच्ची उम्र पर बोझ धरा है 
मौसम भी प्रतिकूल खड़ा है 
चलाना फिर भी रोज पड़ा है
मुहं बाये बैठी थी आगे सौ रहे अनजान
सन्नाटा पसरा गलियों .........


कैसी गंध फिजा में लेकर अब के सावन आया
फूलों से खुश्बू गायब है और दरख्त से साया
ऐसे में बच पाए कैसे गुलशन कि पहचान
सन्नाटा पसरा गलियों में सूनी..............


हमने सघन रात है कटी
सिर्फ रौशनी दीयों ने बनती
कैसे चुकता हो पायेगा
दीपों का एहसान
सन्नाटा पसरा गलियों में सूनी है.............
महेंद्र भार्गव
गंज बासोदा