बुधवार, 26 जनवरी 2011

बहुत उदास आज जीवन है

घर के अन्दर एक नया घर
दीवारों के साथ बटा मन
संबंधों में आया कैसा सूनापन है
बहुत उदास आज जीवन है

सुलझे सुलझे थे जो रिश्ते
नाहक ही क्यों हमसे उलझे
ताना बना टूट ना जाये डरता मन है
बहुत उदास आज जीवन है

माँ बैठी है आस लगाये बेटा फिर भी घर ना आये
त्योहारों पर सूना घर रीता आंगन है
बहुत उदास आज जीवन है

बूढ़ा बाप कम पर जाये
तब घर  में चूल्हा जल पाए
दो जून रोटी में खटता सारा दिन है
बहुत उदास आज जीवन है

महेंद्र भार्गव
गंज बासोदा

शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

गणतंत्र

जन  गण पर हावी हुआ राजनीती का तंत्र
जनता फिर भी चाव से मन रही गणतंत्र

नैतिकता कुंठित हुई
मानवता लाचार
गावं गावं में फैलता
आतंकी व्यापार

अर्थहीन सी जिंदगी कुछ ना सूझे बात
दहशत में हैं बीतते दिन तो चाहे रात

माती अब खोने लगी उसकी मधुर सुगंध
सांसों में घुलने लगी
अब बारूदी गंध

बेइमानो की भीड़  में जनता है खामोश
इन को हम ने खुद चुना अब किसको दे दोष
महेंद्र भार्गव
गंज बासोदा 

गुरुवार, 13 जनवरी 2011

इंतजार

 हम राह देखते रहे प्रभात कि 
ना जाने कब सहर होगी इस रात कि
आज बस्तियों से फिर धुआं उठा है 
किसी ने फिर छेड़ दी है जिक्र जात कि 
महेंद्र भार्गव
गंज बासोदा