सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

बच्चे



मुठ्ठी में बंद कस्तूरी सा महकता बचपन 
या किसी रिसक पट्टी पर फिसलता बचपन
जिस सांचे में ढालोगे ढल जायेंगे 
बच्चे हैं आज संभाला तो संभल जायेंगे 
महेंद्र भार्गव

गंज बसोड़ा