गीत - ग़ज़ल
शनिवार, 20 अगस्त 2011
रात जगती है
नीद खडी सिरहाने अक्सर रात जगती है
अधरों की भाषा नैनो से साफ झांकती है
तन्हाई में नाम लिखी थी उसके जो पाती
आज सुना वो चुपके चुपके
रोज बांचती है
महेंद्र भार्गव
गंज बसोदा
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