देश मेरा बलिदानियों का संगम है
वीरो पर कुर्बान मेरा तन मन है
आज़ादी की डोली लाये दीवाने
मोल लहू का उनके आओ पहचाने
लाठी गोली खाई फंसी पे झूले
इन्कलाब की रह पर चलना न भूले
भारत माँ के लाल बड़े थे अलबेले
हँसते हँसते अपनी जन पे थे खेले
उनकी गाथा गता गंगा का जल है
वीरो पर कुर्बान ......................
वीरो की राहों पर चलने का प्रण लें
राग राग में उत्साह नए हम भी भर लें
जो नज़र डालेगा माँ के दमन पर
नाम मिटा देंगे उसका हम इस जग से
इतना तो अपनी बाँहों में भी बल है
वीरो पर कुर्बान........................
महेंद्र भार्गव
गंज बासोदा
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