बुधवार, 6 अप्रैल 2011

देश मेरा


देश मेरा बलिदानियों का संगम है 
वीरो पर कुर्बान मेरा तन मन है

आज़ादी की डोली लाये दीवाने 
मोल लहू का उनके आओ पहचाने 

लाठी गोली खाई फंसी पे झूले
इन्कलाब की रह पर चलना न भूले

भारत माँ के लाल बड़े थे अलबेले 
हँसते हँसते अपनी जन पे थे खेले

उनकी गाथा गता गंगा का जल है
वीरो पर कुर्बान ......................

वीरो की राहों पर चलने का प्रण लें 
राग राग में उत्साह नए हम भी भर लें

जो नज़र डालेगा माँ के दमन पर 
नाम मिटा देंगे उसका हम इस जग से 

इतना तो अपनी बाँहों में भी बल है
वीरो पर कुर्बान........................

महेंद्र भार्गव 
गंज बासोदा


 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें