रिश्ते पानी पर बनाये चित्रों कि तरह मिट जाते है
और ढह जाते है रेट कि दीवार कि तरह
रिश्ते चुभ जाते है काँटों कि तरह
और मुरझा जाते है फूलों कि तरह
रिश्ते टूट जाते है ख्वाबों कि तरह
रिश्ते बिखर जाते है ताश के महलों कि तरह
रिश्ते बहुत नाजुक होते है फिर भी
ना जाने क्यों जुड़ जाते है रिश्ते
महेंद्र भार्गव
गंज बासोदा
मंगलवार, 28 सितंबर 2010
रविवार, 26 सितंबर 2010
बुझी बुझी सी शाम ढली
थका थका सा दिन निकला
बुझी बुझी सी शाम ढली
रात हुई भूखे पेटों को रोटी कि
फिर आश जगी
चूल्हा बुझा पड़ा जिस घर का
अंगारें है राख हुए
उस घर से चूहों कि टोली
बाहर निकल पड़ी
राम उठाये भूखा पर
भर पेट सुलाता है
आग पेट कि इन बातो से
किसकी यहाँ बुझी
हाय गरीबी नागिन बन
पग पग पर डसती है
दो जून रोटी के बदले
इज्जत लुटती है
भूख पेट कि हाय हमे है
मौत से बड़ी लगी
थका थका सा दिन निकला
बुझी बुझी सी शाम ढली ........
महेंद्र भार्गव
गंज बासोदा
बुझी बुझी सी शाम ढली
रात हुई भूखे पेटों को रोटी कि
फिर आश जगी
चूल्हा बुझा पड़ा जिस घर का
अंगारें है राख हुए
उस घर से चूहों कि टोली
बाहर निकल पड़ी
राम उठाये भूखा पर
भर पेट सुलाता है
आग पेट कि इन बातो से
किसकी यहाँ बुझी
हाय गरीबी नागिन बन
पग पग पर डसती है
दो जून रोटी के बदले
इज्जत लुटती है
भूख पेट कि हाय हमे है
मौत से बड़ी लगी
थका थका सा दिन निकला
बुझी बुझी सी शाम ढली ........
महेंद्र भार्गव
गंज बासोदा
बुधवार, 22 सितंबर 2010
दरवाजे बंद मिले
सुबह शाम फिरता हूँ दर दर
पर दरवाजे बंद मिले
पर दरवाजे बंद मिले
थक हार कर बैठी राहें
पैर मेरे दिन रात चले
पैर मेरे दिन रात चले
कलम कुदाली और हथौड़ा
विरसे में उपहार मिले
विरसे में उपहार मिले
भुजबल से पर्वत को चीरा
नीचे सूखे ताल मिले
नीचे सूखे ताल मिले
नित नए भवन बनाता रहता
हल मगर बेहाल रहे
मुकताकाश में सोते बच्चे भूखे
और बेहाल मिले
और बेहाल मिले
रोज जन्म लेती हैं
शंका हर जीत से द्वन्द चले
मंदिर मस्जिद मत्था टेका
मगर देवता रुष्ट मिले
महेंद्र भार्गव
गंज बासोदा
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