मंगलवार, 28 सितंबर 2010

रिश्ते

रिश्ते पानी पर बनाये चित्रों कि तरह मिट जाते है
और ढह जाते है रेट कि दीवार कि तरह 


रिश्ते चुभ जाते है काँटों कि तरह 
और मुरझा जाते है फूलों कि तरह 


रिश्ते टूट जाते है ख्वाबों कि तरह 
रिश्ते बिखर जाते है ताश के महलों कि तरह 


रिश्ते बहुत नाजुक होते है  फिर भी
 ना जाने क्यों जुड़ जाते है रिश्ते


महेंद्र भार्गव 
गंज बासोदा

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