रिश्ते पानी पर बनाये चित्रों कि तरह मिट जाते है
और ढह जाते है रेट कि दीवार कि तरह
रिश्ते चुभ जाते है काँटों कि तरह
और मुरझा जाते है फूलों कि तरह
रिश्ते टूट जाते है ख्वाबों कि तरह
रिश्ते बिखर जाते है ताश के महलों कि तरह
रिश्ते बहुत नाजुक होते है फिर भी
ना जाने क्यों जुड़ जाते है रिश्ते
महेंद्र भार्गव
गंज बासोदा
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