सुबह शाम फिरता हूँ दर दर
पर दरवाजे बंद मिले
पर दरवाजे बंद मिले
थक हार कर बैठी राहें
पैर मेरे दिन रात चले
पैर मेरे दिन रात चले
कलम कुदाली और हथौड़ा
विरसे में उपहार मिले
विरसे में उपहार मिले
भुजबल से पर्वत को चीरा
नीचे सूखे ताल मिले
नीचे सूखे ताल मिले
नित नए भवन बनाता रहता
हल मगर बेहाल रहे
मुकताकाश में सोते बच्चे भूखे
और बेहाल मिले
और बेहाल मिले
रोज जन्म लेती हैं
शंका हर जीत से द्वन्द चले
मंदिर मस्जिद मत्था टेका
मगर देवता रुष्ट मिले
महेंद्र भार्गव
गंज बासोदा
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