पी गए सरे उजालों को अँधेरे क्या करें
है दीयों से रौशनी की आश आखिर क्या करें
आये कब और कब गए त्यौहार मौसम की तरह
खली जेबों से भला सत्कार इन का क्या करें
रूठ कर बैठी हैं बुलबुल और तितली बाग से
हर तरफ ऐसे चमन है हम नज़ारा क्या करें
महेंद्र भार्गव
गंज बासोदा
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