शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

दिया जलता है



हर एक अश्क माँ का मुझसे सवाल करता है
तेरी कमाई से घर कैसे मेरा चलता 

जिंदगी आ के ठहर जाती  है उन पलकों पे 
घर जब भी किसी  जरुरत को तलब करता है
हर एक अश्क माँ का मुझसे सवाल करता है..........

ग़मों कि आंच पे पकती है मेरे घर कि रोटी
आग चूल्हे में नहीं दिल से धुआं निकलता है

कभी तो बदलेंगे मेरे घर के हालत 
बस इसी आश  में मंदिर पे दिया जलता है  
हर एक अश्क माँ का मुझसे सवाल करता है
महेंद्र भार्गव 
गंज बासोदा


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