तेरी कमाई से घर कैसे मेरा चलता
जिंदगी आ के ठहर जाती है उन पलकों पे
घर जब भी किसी जरुरत को तलब करता है
हर एक अश्क माँ का मुझसे सवाल करता है..........
ग़मों कि आंच पे पकती है मेरे घर कि रोटी
आग चूल्हे में नहीं दिल से धुआं निकलता है
कभी तो बदलेंगे मेरे घर के हालत
बस इसी आश में मंदिर पे दिया जलता है
हर एक अश्क माँ का मुझसे सवाल करता है
महेंद्र भार्गव
गंज बासोदा
kya bat hai bahut hi achchi rachna hai
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