गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

व्यर्थ गवाया

 नाम कमाया जीवन भर ना नामा पाया 
सब कहते है जीवन तू ने व्यर्थ गवाया
अरे हम तो ठहरे  निपट अनाड़ी 
क्या समझेंगे दुनियादारी
गिरगिट जैसा रंग स्वाभाव में भर ना पाया
सब कहते है जीवन तू ने व्यर्थ गवाया
ऊँची नीची रह चले है आड़े टेड़े होग मिले है 
अपशब्दों के बदले में आभार जताया 
सब कहते है जीवन तू ने व्यर्थ गवाया
महेंद्र भार्गव 
गंज बासोदा 

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