शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

गणतंत्र

जन  गण पर हावी हुआ राजनीती का तंत्र
जनता फिर भी चाव से मन रही गणतंत्र

नैतिकता कुंठित हुई
मानवता लाचार
गावं गावं में फैलता
आतंकी व्यापार

अर्थहीन सी जिंदगी कुछ ना सूझे बात
दहशत में हैं बीतते दिन तो चाहे रात

माती अब खोने लगी उसकी मधुर सुगंध
सांसों में घुलने लगी
अब बारूदी गंध

बेइमानो की भीड़  में जनता है खामोश
इन को हम ने खुद चुना अब किसको दे दोष
महेंद्र भार्गव
गंज बासोदा 

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