बुधवार, 26 जनवरी 2011

बहुत उदास आज जीवन है

घर के अन्दर एक नया घर
दीवारों के साथ बटा मन
संबंधों में आया कैसा सूनापन है
बहुत उदास आज जीवन है

सुलझे सुलझे थे जो रिश्ते
नाहक ही क्यों हमसे उलझे
ताना बना टूट ना जाये डरता मन है
बहुत उदास आज जीवन है

माँ बैठी है आस लगाये बेटा फिर भी घर ना आये
त्योहारों पर सूना घर रीता आंगन है
बहुत उदास आज जीवन है

बूढ़ा बाप कम पर जाये
तब घर  में चूल्हा जल पाए
दो जून रोटी में खटता सारा दिन है
बहुत उदास आज जीवन है

महेंद्र भार्गव
गंज बासोदा

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