शनिवार, 20 अगस्त 2011
गुरुवार, 18 अगस्त 2011
May 16, 2011 Slideshow & Video
May 16, 2011 Slideshow & Video: TripAdvisor™ TripWow ★ May 16, 2011 Slideshow ★ to Bhopal. Stunning free travel slideshows on TripAdvisor
शनिवार, 23 जुलाई 2011
चला चल ......................
चला चल, चला चल ......................
प्यास जब जब भी बड़ी हम से रूठी हर नदी फोड़ आये गगरियों को या तलाशे जल
चला चल, चला चल ......................
प्यास जब जब भी बड़ी हम से रूठी हर नदी फोड़ आये गगरियों को या तलाशे जल
चला चल, चला चल ......................
यह जीवन का ताना बाना
बड़ा जटिल इस को सुलझाना
एक गाठ के खुल जाने से
कब मिटता है बल
चला चल, चला चल ......................
बॉस मारते बासे रिश्ते
उम्र बीतती इनमे पिसते
कितनो को है लील गए
यह सम्बन्धी दलदल
चला चल, चला चल ......................
बुझा बुझा सा है उजियारा
सूरज परछाई से हारा
देखे धीरज धर लेने का
क्या मिलता प्रतिफल
चला चल, चला चल ......................
- महेंद्र भार्गव
बुधवार, 6 अप्रैल 2011
देश मेरा
देश मेरा बलिदानियों का संगम है
वीरो पर कुर्बान मेरा तन मन है
आज़ादी की डोली लाये दीवाने
मोल लहू का उनके आओ पहचाने
लाठी गोली खाई फंसी पे झूले
इन्कलाब की रह पर चलना न भूले
भारत माँ के लाल बड़े थे अलबेले
हँसते हँसते अपनी जन पे थे खेले
उनकी गाथा गता गंगा का जल है
वीरो पर कुर्बान ......................
वीरो की राहों पर चलने का प्रण लें
राग राग में उत्साह नए हम भी भर लें
जो नज़र डालेगा माँ के दमन पर
नाम मिटा देंगे उसका हम इस जग से
इतना तो अपनी बाँहों में भी बल है
वीरो पर कुर्बान........................
महेंद्र भार्गव
गंज बासोदा
सोमवार, 21 फ़रवरी 2011
बुधवार, 26 जनवरी 2011
बहुत उदास आज जीवन है
घर के अन्दर एक नया घर
दीवारों के साथ बटा मन
संबंधों में आया कैसा सूनापन है
बहुत उदास आज जीवन है
सुलझे सुलझे थे जो रिश्ते
नाहक ही क्यों हमसे उलझे
ताना बना टूट ना जाये डरता मन है
बहुत उदास आज जीवन है
माँ बैठी है आस लगाये बेटा फिर भी घर ना आये
त्योहारों पर सूना घर रीता आंगन है
बहुत उदास आज जीवन है
बूढ़ा बाप कम पर जाये
तब घर में चूल्हा जल पाए
दो जून रोटी में खटता सारा दिन है
बहुत उदास आज जीवन है
महेंद्र भार्गव
गंज बासोदा
दीवारों के साथ बटा मन
संबंधों में आया कैसा सूनापन है
बहुत उदास आज जीवन है
सुलझे सुलझे थे जो रिश्ते
नाहक ही क्यों हमसे उलझे
ताना बना टूट ना जाये डरता मन है
बहुत उदास आज जीवन है
माँ बैठी है आस लगाये बेटा फिर भी घर ना आये
त्योहारों पर सूना घर रीता आंगन है
बहुत उदास आज जीवन है
बूढ़ा बाप कम पर जाये
तब घर में चूल्हा जल पाए
दो जून रोटी में खटता सारा दिन है
बहुत उदास आज जीवन है
महेंद्र भार्गव
गंज बासोदा
शुक्रवार, 14 जनवरी 2011
गणतंत्र
जन गण पर हावी हुआ राजनीती का तंत्र
जनता फिर भी चाव से मन रही गणतंत्र
नैतिकता कुंठित हुई
मानवता लाचार
गावं गावं में फैलता
आतंकी व्यापार
अर्थहीन सी जिंदगी कुछ ना सूझे बात
दहशत में हैं बीतते दिन तो चाहे रात
माती अब खोने लगी उसकी मधुर सुगंध
सांसों में घुलने लगी
अब बारूदी गंध
बेइमानो की भीड़ में जनता है खामोश
इन को हम ने खुद चुना अब किसको दे दोष
महेंद्र भार्गव
गंज बासोदा
जनता फिर भी चाव से मन रही गणतंत्र
नैतिकता कुंठित हुई
मानवता लाचार
गावं गावं में फैलता
आतंकी व्यापार
अर्थहीन सी जिंदगी कुछ ना सूझे बात
दहशत में हैं बीतते दिन तो चाहे रात
माती अब खोने लगी उसकी मधुर सुगंध
सांसों में घुलने लगी
अब बारूदी गंध
बेइमानो की भीड़ में जनता है खामोश
इन को हम ने खुद चुना अब किसको दे दोष
महेंद्र भार्गव
गंज बासोदा
गुरुवार, 13 जनवरी 2011
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